शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

उमर तो बच्चा है जी!

कश्मीर जल रहा है मनमोहन सिंह और उमर अब्दुल्ला हालात पर मजबूर हैं। राहुल गांधी कह रहे हैं कि कश्मीर पार्ट टाइम जॉब नहीं है उमर को मौका दिया जाना चाहिए। कितना मौका? किसी राज्य में चार महीने से अराजकता है और वहां का मुख्यमंत्री अपने पद पर बना हुआ है, क्या यह पर्याप्त मौका नहीं है? उमर अब्दुल्ला इन चार महीनों में जिस प्रकार स्थिति संभालने में अक्षम साबित हुए हैं उससे पता चलता है कि कश्मीर उनके हाथों में सुरक्षित नहीं है। उल्टे वे अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए आर्म्ड फोर्सेस लॉ को कमजोर करने के लिए मनमोहन सिंह पर दबाव बना रहे हैं। उमर जो करना चाहते हैं वहीं अलगाववादी भी चाहते हैं। यदि कश्मीर में सेना को कमजोर किया गया तो क्या उमर सुरक्षित रह पाएंगे। कश्मीर का हर नेता और अधिकारी बिना सुरक्षा के एक पग भी नहीं चल सकता। लेकिन दुर्भाग्य है कि अपनी जान पर खेल पर इनकी सुरक्षा करने वाले इन जवानों को ही ये सारी समस्याओं का जड़ मानते हैं। यह बात समझ से परे है कि कश्मीरी अवाम का कथित रहनुमा बनने वाले अलगाववादी कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी और उनके जैसे एक- दो और अलगाववादियों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से केंद्र और राज्य सरकार संकोच क्यों कर रही है। कश्मीर में आज जो कुछ भी हो रहा है उसके सामने उमर बेबस नजर आते हैं। गिलानी कैलेंडर जारी कर रहे हैं कि लोग दिन को पत्थरबाजी करें और रात का काम करें। आखिर प्रशासन उमर के हाथों में है या गिलानी के हाथों में? अभी कश्मीर के पुलिस महानिदेशक ने एक टेप जारी किया था, जिसमें गिलानी अपने ट्टूओें से कह रहे थे कि भीड़ में घुसकर हिंसा फैलाओ, पुलिस पहचान भी नहीं पाएगी। अगर कश्मीर की पुलिस और सरकार के पास गिलानी के खिलाफ हिंसा और तनाव फैलाने के इतने ठोस सबूत हैं तो वह उसे गिरफ्तार क्यों नहीं करती? गिरफ्तार करती भी है तो ससम्मान 24 घंटे के अंदर ही घर भी पहुंचा देती है। मतलब सांकेतिक गिरफ्तारी। सरकार की इसी कमजोरी के कारण गिलानी कहता है कि मैं पाकिस्तानी एजेंट हूं, सरकार में हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करे और सरकार उसकी इस घोषणा पर बगलें झांकती नजर आती है। जब तक कश्मीर और भारत सरकार ऐसे लोगों के साथ सख्ती से नहीं निपटेगी जब तक अफजल गुरु को फांसी नहीं देगी तब तक अलगाववादियों और आतंकियों को यह समझ नहीं आएगा कि भारत को बांटने का सपना देखने का अंजाम कितना बुरा हो सकता है। अफजल गुरु को ही ले लीजिए उसकी सजा पर फाइल दिल्ली सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय के बीच 8 वर्षों से झूल रही है। कभी दिल्ली सरकार कहती है कि मुझे वह फाइल नहीं मिली तो कभी गृह मंत्रालय कहता है कि उसे दिल्ली सरकार का जवाब प्राप्त नहीं हुआ। आखिर जब दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार है तो फिर इस प्रकार का संवादहीनता और टालमटोल क्यों है? कहीं यह सोची-समझी रणनीति तो नहीं है ? ऐसे ही सोची-समझी रणनीति बनाने वालों ने इस देश का बेड़ा गर्क किया है। जिस प्रकार गिलानी ने कहा था मैं पाकिस्तानी एजेंट हूं, सरकार में हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करे। ऐसा ही बयान अफजल की पत्नी ने भी दिया था कि भारत की सरकार में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह मेरे पति को फांसी पर लटका सके। मतलब सबने यह समझ लिया है कि भारत की वर्तमान सरकार कमजोर और निकम्मी सरकार है और उसके अंदर कोई ठोस फैसला लेने की हिम्मत नहीं है। भारत सरकार को अलगाववादियों को साफ-साफ बता देना चाहिए कि कश्मीर कहीं नहीं जाएगा जिन लोगों को जहां जाना है वहां जाएं। अभी फारुक अब्दुल्ला का एक बयान आया था कि जो लोग उधर यानि पाकिस्तान जाना चाहते हैं, उन्हें यह नहीं मालूम है कि वहां की स्थिति कितनी खराब है। अत: जिन लोगों को भी यह लगता है कि उनका भविष्य पाकिस्तान में बढ़िया है वे नि:संकोच वहां चले जाएं। भारत में वैसे ही जनसंख्या काफी हो गई है। ऐसे लोग जाएंगे तो भारत में रहना और आनंददायक होगा।

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