शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

समझदार हो गया है अपना भारत !

अयोध्या मसले पर आए फैसले के बाद पूरे देश ने जिस प्रकार की शांति और सौहार्द का परिचय दिया है , वह बदलते भारत की तस्वीर का अहसास कराता है। लोगों ने बता दिया है कि वे कट्टरवादियों के हाथों की अब कठपुतली नहीं बनेंगे। लेकिन कुछ लोग हैं, जिन्हें लग रहा है कि जनता में इसी तरह सांप्रदायिक सौहार्द कायम रहा तो उनका वोट बैंक खतरे में पड़ जाएगा ? ऐसे ही एक नेता मुलायम सिंह ने फैसले के खिलाफ बयान देते हुए इसे कानून पर आस्था की जीत बताया। उनके कहने का भाव यह था कि जजों ने तथ्य को नजरअंदाज कर बहुसंख्यक हिंदुओं की आस्था को तरजीह दी, लेकिन उनका यह दांव उल्टा पड़ गया। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही मुलायम को लताड़ लगाते हुए कहा कि ऐसे समय में जब पूरा देश शांति के साथ इस फैसले का स्वागत कर रहा है, मुलायम सिंह को दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर भाईचारे की नजीर पेश करते हुए शिया समुदाय की एक संस्था ‘हुसैनी टाईगर’ ने मंदिर निर्माण के लिए 15 लाख रुपए देने की बात कही है। मतलब लोग अब नेताओं की चाल समझने लगे हैं, उनमें राजनीतिक और धार्मिक परिपक्वता बढ़ी है। फैसला आने के बाद में मैंने कई लोगों से मुलाकात में फैसले पर उनकी राय जाननी चाही। मुझे एक भी ऐसा आदमी नहीं मिला जिसने यह कहा हो कि फैसला ठीक नहीं है। लोगों का कहना था कि यद्यपि यह साबित हुआ हो गया है कि बाबरी ढांचे के नीचे मंदिर होने की बात पाई गई है, फिर भी मुसलमान भाइयों को भी मस्जिद के लिए जगह देना धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना के लिए अच्छा कदम है। दूसरी ओर कई ऐसे लोग भी मिले जो फैसले को लेकर पूरी तरह उदासीन थे। उनका कहना था कि साहब दाल-रोटी की चिंता से ही फुर्सत कहां है कि इन बातों को लेकर माथापच्ची करें। मतलब लोग अब लोगों में धार्मिक उन्माद पैदा कर भड़काया नहीं जा सकता। लेकिन कुछ लोगों की चैन फैसले से खो गई है , वे अब सुप्रीम कोर्ट जाने की हुंकार भर रहे हैं। वे चाहते हैं मामला जिंदा रहे ताकि आगे भी राजनीतिक रोटी सेंकी जाती रहे।

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